tag:blogger.com,1999:blog-5601339524702392220.post3232405495746283485..comments2023-03-21T06:09:30.114-07:00Comments on कहानी-कुञ्ज: कर्ज़प्रतिभा सक्सेनाhttp://www.blogger.com/profile/12407536342735912225noreply@blogger.comBlogger1125tag:blogger.com,1999:blog-5601339524702392220.post-44319309284492230912011-02-06T21:46:06.588-08:002011-02-06T21:46:06.588-08:00मुझे पढ़ते पढ़ते लग रहा था...कि कहीं कहानी का अंत ...मुझे पढ़ते पढ़ते लग रहा था...कि कहीं कहानी का अंत बहुत भावुक न हो...:( मगर मुक़म्मल अंजाम हुआ है किस्से का...मजबूत और जायज़ भी ..:) <br /><br />बहुत ही अच्छी लगी कहानी..खासकर प्रकाश के मन का द्वन्द.....साफ़ साफ़ महसूस हुआ उसके दिल का बोझ....<br />बसंती में जो परिवर्तन आया..उसके लिए भी तालियाँ :)...मैं भी हर लड़की के अंदर यही चीज़ देखना चाहती हूँ..:)<br /><br />हमारे एक सर हुआ करते थे..अभी भी हैं...कॉलेज में..उन्होंने कभी मुझे किसी बात पर समझाया था.....कि, ''बेटा जीवन में इतना तैयार रहना मानसिक और शारीरिक रूप से....कि तुम्हारे माता पिता भी अचानक इस संसार से चलें जाएँ तो तुम्हारा एक आंसू भी न गिरे..''<br />आपकी कहानी के समापन ने मेरे साथ साथ इस बात को भी ह्रदय में और मजबूत किया....<br /><br />:)<br /><br />बधाई !Taruhttps://www.blogger.com/profile/08735748897257922027noreply@blogger.com