मंगलवार, 23 नवंबर 2010

पीला गुलाब - 3.

ससुराल में ननदें आईं उतारने .


एक ने ठिठोली की ,' वाह !चार साल पहले आनेवाली थीं ,अब आईं हैं आप ?'

दूसरी बोली ,'आना तो यहीं पड़ा न इसी घर में ?चलो अच्छा है पहले बड़ी बन कर आतीं अब छोटी बन कर आई हैं .'

एक लड़की बोली ,'क्या इनकी शादी चार साल पहले से तय थी ?''

ननद बोली ,तय क्या ?बरात तक चली गई थी इन्हें लेने ,तब.बड़के दादा के लिये .'

' बड़के दादा के साथ ?अच्छा !'

,'अरे ,बक-बक बंद करो अपनी ,और ले जाओ इन्हें अंदर ,' सामान उतरवाते बड़के दादा बोले।

*
परछन की तैयारियाँ हो रही हैं .अभी बहू को बाहर ही रोक कर रखना ,' जिठानी ने दरवाज़े पर आकर कहा .

पड़ोस के बाहरी कमरे में बहू के बैठने का इन्तज़ाम कर दिया गया.

' रातभर का सफ़र करके आई है बिचारी ।तनिक फ़्रेश होले ।चाय वगैरा वहीं पहुँचा देना .'

जिठानी ,बड़ी ठसकेदार ऊपर से कर्नल की बीवी .उनका कहा कोई टाल नहीं सकता .सारा प्रबंध उन्हीं को करना था .

बहू तैयार हो गई .

अरे ,अब छुटके दादा कहाँ ग़ायब हो गये ?

'शिब्बू ,पहले ही घर में घुस गये .नहाय रहे हैंगे .'

' अकेले घर में घुसने किसने दया उन्हें ?निकालो जल्दी बाहर .अब तो दुलहिन के साथ ही गृह-प्रवेश होगा .'

परछन के बाद मुँह-दिखाई होने लगी .किसने क्या दिया ,रुपया ज़ेवर सबका हिसाब रख रहीं थी पास बैठी बड़ी बहू .सब उठा-उठा कर चेक करती लिखती जा रही थी .बड़ा लंबी लिस्ट थी.

'पूछ तो सबका रही हैं ,आप क्या दे रही हैं बड़ी भाभी ?'

'मैने तो अपना देवर ही दे दिया .'

'हुँह ,ये भी कोई बात हुई ?'

देख लो ,लिखा है सबसे पहले .'

झाँक कर देखा - मिसेज़ अभिमन्यु के नाम पर लिखे हैं हीरे के टॉप्स ।मिसेज़ अभिमन्यु माने कर्नल साहब की पत्नी .

अगले दिन बात उठी सब रिश्तेदारों से बहू का परिचय करवा दो -पता नही कौन कब चल जाय .

परिचय अर्थात् खीर खिलाई .बहू अपने हाथों बनाई खीर परस-परस कर सबको देगी ,उनके पास जाकर जैसे ननदोई से ,'जीजा जी लीजिये .'कह कर चरण स्पर्श करती .

और वे खीर लेकर उसे कुछ भेंट देंगे .

'अरे इतनी सी खीर ?भई बड़ी मँहगी पड़ी .'

उसे भेंट या रुपये पकड़ा देते .वह सिर झुकाये झिझकते हुये ले कर साथ परिचय देती चल रही ननद को पकड़ा देती .

'ये तुम्हारे ससुर जी हैं ?क्या कहोगी पापा जी या बाबूजी ?'

'जो सब कहते हैं वही तो कहेगी ,'जिठानी बोलीं .

'बाबूजी' कह कर उसने पाँव छुये .
उन्होंने सिर पर हाथ रखा ,'आज को तुम्हारी सास होतीं तो ...'

'अरे बाबू जी ,' अम्माँ नहीं हैं तो क्या बहू बड़ी आदर्शवादी है .कुछ कहने समझाने की ज़रूरत नहीं पड़ेगी .'

उन्होंने एक जोड़ कंगन पकड़ा दिये .'तुम्हारी सास ने दोनो बहुओं के लिये एक से बनवाये थे .'

उसने झुक कर दोनों हाथों से विधिपूर्वक चरण छू कर माथे से लगाये .

ये ताऊ जी ,ये चाचा जी -ये जीजाजी , बरेलीवाले जे ,ताऊ जी के मँझले बेटे .'

अरे ,नाम बताओ ।ऐसे कैसे याद रखेगी ?'

'हाँ इनका नाम सुरेन्द्र बहादुर .क्यों लल्ला जी ,क्या बहादुरी दिखाई आपने
.'

कहाँ भौजी ,बहादुरी दिखाने का ठेका तो कर्नल साहब का है .हम तो आपके सामने कलेजा थाम कर रह जाते हैं .'

ज़ोरदार ठहाका .

लोग छँटते जा रहे हैं .

काहे भौजी , कंडैल साहब को कहाँ दुकाय दिया ?कंजूस कहीं के ..'

'काहे गँवारन की तरह कंडैल-कंडैल कहते हो .?नई बहू तुम्हें अपढ समझेगी .'

'समझन देओ .बस तुम हमे समझती रहो ,हम उसई में खुस .'

''ये तुम्हारे जेठ प्रिन्सिपल हैं ,अपढ-गँवार मत समझ लेना तुम्हें भी पढ़ा देंगे !.
।'

'चलो मनुआ हो !कहाँ खिसक लिये ?बड़े कंजूस आदमी हो भाई "' उन्होंने आवाज़ लगाई .

उसने सोचा था कर्नल साहब को अभि कहा जाता होगा पर घर उनका घर का नाम मनू है .



'हम तो आही रहे थे .'

'लल्ला जी वो खिसके नहीं थे माल लेने गये होंगे .'

' उन्हीं की ओरी लेंगी न!'

देख लो भाभी ,पहले तुम्हारी जगह यही आने वाली थीं .'

'तो हमने कौन रोक दिया था देवर जी !काहे नहीं आ गईं ?

' लिखी तो शिब्बू के नाम रहीं उन्हें कइस मिल जातीं ,' किसी बड़ी-बूझी की आवाज़ थी ,'तभी न दरवाजे से बरात लौट आई .'

'क्या बेकार की बातें लगा रखी हैं ' कर्नल साहब ने चुप कर दिया सबको .

'उन्हें ये सब बातें अच्छी नहीं लगतीं ,' जिठानी बोलीं ' क्या फ़ायदा ?जो हो गया खतम करो .'

खीर भरी कटोरी बहू के हाथ में पकड़ाती छोटी ननद बोली ,'तो भाभी ,अपने जेठ के पाँव छुओ कहो जेठ जी !'

'जेठजी कौन कहता है ?भाई साहब कहो ,नहीं तो दादा जी ...',जिठानी का सुझाव था .

सिर झुकाये ही खीर की कटोरी उसने उनके हाथ में पकड़ाई ,और झुक गई पांवों पर.कर्नल साहब ज्यों के त्यों सन्न से खड़े रह गये .

'अरे ,उसे खीर खिलाई तो दो ,'जिठानी ने टोका तो वास्तविक जगत में आये ।पत्नी ने जो हाथ में पकड़ा दिया लेकर उसकी ओर बढ़ा दिया और घूम कर चल दिये .लौटते-लौटते जेब से रूमाल निकाल कर पाँवों पर टपके दो बूँद आँसू उन्होंने धीरे से पोंछ दिये .

पीछे से आवाज़ आ रही थी ,'क्या दिया बड़के दादा ने ?

' जड़ाऊ पेन्डेन्ट.'

' वाह !'

आँसुओं से धुँधला गई आँखों से वह कुछ देख नहीं पा रही थी .

घूँघट से कितनी सुविधा हो जाती है.

*


!****

रविवार, 14 नवंबर 2010

पीला गुलाब - 2.

*
चार साल बीत गए.

उस दिन शृंगार किए बैठी रह गई थी ,आज फिर विवाह-मंडप में -किसी दूसरे के लिए .

वस्त्राभूषण का चढ़ावा सम्हालती भाभी रुचि को लिवा ले गईं.
कर्नल साहब फिर सोने नहीं गए .
वहीं साइड में पड़े काउच पर बैठ गए .किसी से कुछ बात-चीत नहीं .वैसे भी उनके  व्यक्तित्व से सब रौब खाते हैं .

दोनों पक्षों की हँसी ठिठोली चलती रही .उनके संयत गंभीर व्यक्तित्व के सामन किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि कुछ कहे .उन्होंने ने सूट की जेब से सिगरेट केस निकाल कर एक सिगरेट निकाली .छोटे बहनोई ने लाइटर से जला दी .वे चुपचाप शून्य में ताकते बैठे सिगरेट पीते रहे । ख़त्म होते ही दूसरी जला ली .

वर को लाकर बिठाया गया .रस्में पूरी की जाती रहीं . कन्या के पिता कन्या के भाई ,सबकी पुकार लगती रही ।सब आ-आ कर अपना रोल निभाते रहे .

'कन्या को बुलाइये .'

कन्या की सखियाँ उसे मंडप में ले आईं .

उन्होंने तीसरी सिगरेट जला ली थी .

'नहीं अभी कन्या वामांग में नहीं ,दाहिनी ओर बिठाइये .

फूल माला जल, अक्षत ,मधुपर्क ,खीलें ,कलावा -

सिगरेटें खत्म होती रहीं ,जलती रहीं .

पाँचवीं सिगरेट !

ट्रे घूमती रही ,कभी कोल्ड-ड्रिंक कभी चाय ,कॉफ़ी .

कर्नल साहब बिना देखे सिर हिला कर मना करते रहे .

इधर -उधर बैठे लोग शादी की मौज में रमे रहे .कन्य-पक्ष की लड़कियों को छेड़ते रहे .

छोटे -बड़े बहनोई अपने साथियों के साथ बैठे हँसी-ठिठोली करते रहे .कन्या-पक्ष की बहुयें और लड़कियाँ हँसती रहीं.

ये सातवीं सिगरेट है .
' हमारे लड़के से तो सब कहलवा लिया पंडिज्जी ,उनसे भी तो कहलवाओ .'

पंडिज्जी मुस्करा दिये -कन्या ज़ोर से कैसे बोलेगी ?'

'क्या पता उनने प्रतिज्ञा की या नहीं एक बार तो हाँ कहला दीजिये .'

'हाँ और क्या धीरे से ही कह दे हम कान लगाये हैं .'

'कह दो बिटिया - हाँ .'

आवाज़ नहीं आई .

'भई ,ये तो गलत है .एक से सब कबुलवाना ,दूसरे से कुछ नहीं ।'

'मौनं स्वीकृति लक्षणम् ',पडित जी ने व्यवस्था दी .

फिर हँसी मज़ाक हुआ .
सातवीं भी जल चुकी .
कन्यादान ,फेरे .दसवीं सिगरेट फुँक चुकी .

अभी रात के सिर्फ. दो बजे हैं .कितन सिगरेटें फूँकीं उन्होने उस रात ,गिनने की फ़ुर्सत किसे ?

*

रिश्तेदारों में वही चर्चा चल रही है .

चार साल पहले भी यही बरात आई थी इसी लड़की के लिए .

कोई कह रहा था -जा रही है उसी घर में ,पर चार साल बाद किसी दूसरे से गाँठ बाँध कर !

' अच्छा !'

'पर हो क्या गया था ?

हुआ क्या था बरात का स्वागत हो चुका था .जयमाल पड़ चुकी थी .पर बारात लौटा दी .

किसने ?

लंबी कहानी है -होता वही है जो किस्मत में लिखा होता है ।जाना उसी घर में था पर बड़े के बजाय छोटे से गाँठ जोड़ कर ।'

कहानी वही सुन्दर पढr-लिखी लड़की -ब्राह्मण परिवार की.किस्मत से संबंध तय हो गया अच्छे घर में,लरिका सेना में बड़ा आफिसर रहे -कोई माँग नहीं.काहे से कि लरिका के मन भाय गई थी.

हवाई जहाज़ से बारात आई .तब तक सब ठीक- ठाक रहै .

पर ऊ फौज के लोग ,उन्हें कहाँ खाने-पीने से परहेज़ .

बोतलें खोल लीं ,बाज़ार से नॉनवेज मँगा लिया मस्ती कर रहे थे.किसी ने जाकर घर की औरतों को फूँक दिया .बस,हल्ला मच गया ,शराबी-कबावी हैं .कैसे गुजर-होगा लड़की का .

शराब की लत में बर्बादी के जाने कितने किस्से याद किए जाने लगे .रोना-धोना मच गया.

और नतीजा ये कि कहला दिया लड़की ब्याह से मना कर रही है .

वो लोग पहले तो कहते रहे लड़की को सामने बुलाओ वो आकर कह दे .हम चुपचाप चले जायेंगे .

पर इन लोगों ने लड़की को सामने लाने से से साफ़ मना कर दिया .

क्या करते बिचारे !दो-दो पेग और चढ़ा लिए ,लौटने की तैयारी करने लगे .

*

*
पर होनी को कुछू और मंजूर रहै .
बड़ेन को   लगा बिना बहू बरात कैसे लौटे ,यहीं रिश्तेदारी में एक लड़की रही बिन माँ-बाप की,अच्छी रहै ,दहेज का भरना कौन भरे सो बियाह नाहीं होय पा रहा था . मामा के पास पली बढ़ी रहे ,उन्हई ने आगे बढके  के ब्याह दी ,उसके तो भाग खुल गए .आई है बरात में कर्नल पति के साथ

और इहका  जब एक धब्बा लगा लग गया.जहाँ जायें बात चलायें सब इहै पूछैं बरात काहे लौट गई? बस इहैं बात अटक जात रही .


चार बरस बाद एक लरिका की खबर मिली  लड़का  मामूली क्लर्क रहे ,वइसे कुल परवार सब दुरुस्त  था .सो का करते कब लौं लरकिनी बैठाए रखते .
बात चलाई ऊ तैयार हुइगे .कहे लाग हाँ,हाँ लरकिनी हमार देखी भई है .ई लरिका सराव छुअत भी नहीं .पक्का बिरहमन .
भवा का कि उहै आरमी ऑफिसर केर छोट भाई रहे .
अउर का !
' हाँ कर्नल साहब का छोटा भाई है ।'
उमर का कितना फ़रक है भाइयों में ?'
'डेढ साल का ।'
'अच्छा !पर जमीन -आसमान का फरक है दोनो में  ।'
'हाँ वो तो हई है ।'
वो थोड़े साँवले लंबे हर चीज़ के शौकीन .और ये रंग थोड़ा साफ़ है पर उनसे बित्ते भर छोटे .घर में बैठे रहेंगे कहीं आने-जाने से भी जी चुरायेंगे .
इसीलिये न खेलने में रहे न पढ़ने में ।इन्टरकॉलेज में पढ़ाने को मिल गया असमे परम संतुष्ट !
महतारी तबैं नाहीं रहीं थीं   ,कोऊ ध्यान न दिहा सो क्वाँरा रहै. उन्हका तो छप्पर फाड़ के मिला    सुन्दर लरकिनी, पढ़ी-लिखी जाने-बूझे घर की .काहे बारात लौटी रही सोऊ सब जान रहे ऊपर से कमाऊ .ई भी तो इन्टरै कालिज में पढ़ाती हैं पिछले तीन साल से .चट्ट हाँ कर दिहिन.
कहाँ कर्नल साहब और कहाँ ई किलर्कवा सब किस्मत की बात .

*

-क्रमशः

*