रविवार, 14 नवंबर 2010

पीला गुलाब - 2.

*
चार साल बीत गए.

उस दिन शृंगार किए बैठी रह गई थी ,आज फिर विवाह-मंडप में -किसी दूसरे के लिए .

वस्त्राभूषण का चढ़ावा सम्हालती भाभी रुचि को लिवा ले गईं.
कर्नल साहब फिर सोने नहीं गए .
वहीं साइड में पड़े काउच पर बैठ गए .किसी से कुछ बात-चीत नहीं .वैसे भी उनके  व्यक्तित्व से सब रौब खाते हैं .

दोनों पक्षों की हँसी ठिठोली चलती रही .उनके संयत गंभीर व्यक्तित्व के सामन किसी की हिम्मत नहीं पड़ी कि कुछ कहे .उन्होंने ने सूट की जेब से सिगरेट केस निकाल कर एक सिगरेट निकाली .छोटे बहनोई ने लाइटर से जला दी .वे चुपचाप शून्य में ताकते बैठे सिगरेट पीते रहे । ख़त्म होते ही दूसरी जला ली .

वर को लाकर बिठाया गया .रस्में पूरी की जाती रहीं . कन्या के पिता कन्या के भाई ,सबकी पुकार लगती रही ।सब आ-आ कर अपना रोल निभाते रहे .

'कन्या को बुलाइये .'

कन्या की सखियाँ उसे मंडप में ले आईं .

उन्होंने तीसरी सिगरेट जला ली थी .

'नहीं अभी कन्या वामांग में नहीं ,दाहिनी ओर बिठाइये .

फूल माला जल, अक्षत ,मधुपर्क ,खीलें ,कलावा -

सिगरेटें खत्म होती रहीं ,जलती रहीं .

पाँचवीं सिगरेट !

ट्रे घूमती रही ,कभी कोल्ड-ड्रिंक कभी चाय ,कॉफ़ी .

कर्नल साहब बिना देखे सिर हिला कर मना करते रहे .

इधर -उधर बैठे लोग शादी की मौज में रमे रहे .कन्य-पक्ष की लड़कियों को छेड़ते रहे .

छोटे -बड़े बहनोई अपने साथियों के साथ बैठे हँसी-ठिठोली करते रहे .कन्या-पक्ष की बहुयें और लड़कियाँ हँसती रहीं.

ये सातवीं सिगरेट है .
' हमारे लड़के से तो सब कहलवा लिया पंडिज्जी ,उनसे भी तो कहलवाओ .'

पंडिज्जी मुस्करा दिये -कन्या ज़ोर से कैसे बोलेगी ?'

'क्या पता उनने प्रतिज्ञा की या नहीं एक बार तो हाँ कहला दीजिये .'

'हाँ और क्या धीरे से ही कह दे हम कान लगाये हैं .'

'कह दो बिटिया - हाँ .'

आवाज़ नहीं आई .

'भई ,ये तो गलत है .एक से सब कबुलवाना ,दूसरे से कुछ नहीं ।'

'मौनं स्वीकृति लक्षणम् ',पडित जी ने व्यवस्था दी .

फिर हँसी मज़ाक हुआ .
सातवीं भी जल चुकी .
कन्यादान ,फेरे .दसवीं सिगरेट फुँक चुकी .

अभी रात के सिर्फ. दो बजे हैं .कितन सिगरेटें फूँकीं उन्होने उस रात ,गिनने की फ़ुर्सत किसे ?

*

रिश्तेदारों में वही चर्चा चल रही है .

चार साल पहले भी यही बरात आई थी इसी लड़की के लिए .

कोई कह रहा था -जा रही है उसी घर में ,पर चार साल बाद किसी दूसरे से गाँठ बाँध कर !

' अच्छा !'

'पर हो क्या गया था ?

हुआ क्या था बरात का स्वागत हो चुका था .जयमाल पड़ चुकी थी .पर बारात लौटा दी .

किसने ?

लंबी कहानी है -होता वही है जो किस्मत में लिखा होता है ।जाना उसी घर में था पर बड़े के बजाय छोटे से गाँठ जोड़ कर ।'

कहानी वही सुन्दर पढr-लिखी लड़की -ब्राह्मण परिवार की.किस्मत से संबंध तय हो गया अच्छे घर में,लरिका सेना में बड़ा आफिसर रहे -कोई माँग नहीं.काहे से कि लरिका के मन भाय गई थी.

हवाई जहाज़ से बारात आई .तब तक सब ठीक- ठाक रहै .

पर ऊ फौज के लोग ,उन्हें कहाँ खाने-पीने से परहेज़ .

बोतलें खोल लीं ,बाज़ार से नॉनवेज मँगा लिया मस्ती कर रहे थे.किसी ने जाकर घर की औरतों को फूँक दिया .बस,हल्ला मच गया ,शराबी-कबावी हैं .कैसे गुजर-होगा लड़की का .

शराब की लत में बर्बादी के जाने कितने किस्से याद किए जाने लगे .रोना-धोना मच गया.

और नतीजा ये कि कहला दिया लड़की ब्याह से मना कर रही है .

वो लोग पहले तो कहते रहे लड़की को सामने बुलाओ वो आकर कह दे .हम चुपचाप चले जायेंगे .

पर इन लोगों ने लड़की को सामने लाने से से साफ़ मना कर दिया .

क्या करते बिचारे !दो-दो पेग और चढ़ा लिए ,लौटने की तैयारी करने लगे .

*

*
पर होनी को कुछू और मंजूर रहै .
बड़ेन को   लगा बिना बहू बरात कैसे लौटे ,यहीं रिश्तेदारी में एक लड़की रही बिन माँ-बाप की,अच्छी रहै ,दहेज का भरना कौन भरे सो बियाह नाहीं होय पा रहा था . मामा के पास पली बढ़ी रहे ,उन्हई ने आगे बढके  के ब्याह दी ,उसके तो भाग खुल गए .आई है बरात में कर्नल पति के साथ

और इहका  जब एक धब्बा लगा लग गया.जहाँ जायें बात चलायें सब इहै पूछैं बरात काहे लौट गई? बस इहैं बात अटक जात रही .


चार बरस बाद एक लरिका की खबर मिली  लड़का  मामूली क्लर्क रहे ,वइसे कुल परवार सब दुरुस्त  था .सो का करते कब लौं लरकिनी बैठाए रखते .
बात चलाई ऊ तैयार हुइगे .कहे लाग हाँ,हाँ लरकिनी हमार देखी भई है .ई लरिका सराव छुअत भी नहीं .पक्का बिरहमन .
भवा का कि उहै आरमी ऑफिसर केर छोट भाई रहे .
अउर का !
' हाँ कर्नल साहब का छोटा भाई है ।'
उमर का कितना फ़रक है भाइयों में ?'
'डेढ साल का ।'
'अच्छा !पर जमीन -आसमान का फरक है दोनो में  ।'
'हाँ वो तो हई है ।'
वो थोड़े साँवले लंबे हर चीज़ के शौकीन .और ये रंग थोड़ा साफ़ है पर उनसे बित्ते भर छोटे .घर में बैठे रहेंगे कहीं आने-जाने से भी जी चुरायेंगे .
इसीलिये न खेलने में रहे न पढ़ने में ।इन्टरकॉलेज में पढ़ाने को मिल गया असमे परम संतुष्ट !
महतारी तबैं नाहीं रहीं थीं   ,कोऊ ध्यान न दिहा सो क्वाँरा रहै. उन्हका तो छप्पर फाड़ के मिला    सुन्दर लरकिनी, पढ़ी-लिखी जाने-बूझे घर की .काहे बारात लौटी रही सोऊ सब जान रहे ऊपर से कमाऊ .ई भी तो इन्टरै कालिज में पढ़ाती हैं पिछले तीन साल से .चट्ट हाँ कर दिहिन.
कहाँ कर्नल साहब और कहाँ ई किलर्कवा सब किस्मत की बात .

*

-क्रमशः

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